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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

10. चौथाई औरत 

यह कहानी अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत कहावत पर आधारित है । 

विनय की पदोन्नति स्कूल व्याख्याता के पद पर हुई थी । उसे इस शुभ अवसर पर बहुत खुश होना चाहिए था मगर सरकार अपने कर्मचारियों को खुश होने का अवसर कहां देती है ? एक हाथ से कुछ देती है तो दूसरे हाथ कुछ छीन भी लेती है । लेन देन के मामले में पक्की साहूकार बन जाती है ये सरकार । अब विनय को ही ले लो । सरकार ने उसे पदोन्नति देकर उसे निहाल कर दिया था मगर साथ ही उसका स्थानांतरण जयपुर से सिणधरी कर दिया था । सिणधरी बाड़मेर जिले में है जो जयपुर से लगभग 600 किलोमीटर दूर है । यहां तक जाने के लिये जयपुर से बालोतरा तक जाने के लिए ट्रेन से जाना होता है और बालोतरा से सिणधरी बस से जाना होता है । वैसे जयपुर से सिणधरी बस से भी जाया जा सकता है मगर इतनी लंबी बस यात्रा सही नहीं रहती है इसलिए विनय ने ट्रेन से जाना ही उपयुक्त समझा । 

विनय संतोषी प्रकृति का व्यक्ति है । जो मिल गया उसी में संतुष्ट रह लेता है । कभी शिकायत नहीं करता है । लोगों ने उसे बहुत कहा कि आजकल तो स्थानांतरण एक उद्योग की तरह है । "निवेश" करो और तुरंत "लाभ" ले लो । पर विनय हिन्दी भाषा का अध्यापक था । उसे ये "लेन देन" और "व्यापार" वाली बातें पसंद नहीं आती थी । उसने अपने मन को संतोष दिला दिया था कि पता नहीं इसमें ईश्वर की क्या इच्छा है ? ईश्वर ने अगर उसका स्थानांतरण इतनी दूर किया है तो इसमें जरूर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा जो अभी उसे दिखाई नहीं दे रहा है मगर वक्त आने पर पता चल जायेगा । इसलिए विनय हर बात , घटना और काम को ईश्वर का प्रसाद मानकर सहर्ष स्वीकार कर लेता था । 

वह सिणधरी पहुंच गया और सीधे ही स्कूल चला गया । यद्यपि अभी 10 ही बजे थे और उसने सोचा था कि अभी कोई आया नहीं होगा स्कूल में । पर उसने यह भी सोचा कि वहां बस अड्डे पर बैठा बैठा वह क्या कर लेगा ? इससे बेहतर है कि स्कूल ही चला जाये । स्कूल साढे दस बजे से लगना था । 
उसे दूर से ही स्कूल खुला दिख गया था । उसने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति कमरों की सफाई कर रहा है । उसे देखकर वह व्यक्ति उसके पास आ गया और उसे नमस्कार करके बोला 
"साहब, मैं हेतराम हूं । यहां पर सहायक कर्मचारी हूं । आप विनय सर हैं ना" ? उसके चेहरे पर आदर और सादगी के भाव थे । इन बातों को सुनकर विनय चौंका 
"आपको कैसे पता कि मैं विनय ही हूं" 
"साहब मुझे इस स्कूल में 35 साल हो गये हैं । ये बाल मैंने कोई धूप में सफेद नहीं किये हैं । कल स्टाफ में सब लोग चर्चा कर रहे थे कि यहां पर आपको लगाया है और ...."  
"और क्या" ? 

वह कुछ बोलता इससे पहले एक जनानी तीखी रौबदार आवाज सुनाई दी 
"हेतराम जी" 
उस आवाज को सुनकर हेतराम सकपका गया और तुरंत उधर दौड़ पड़ा जहां से आवाज आ रही थी । वह इतना ही कह पाया "अभी आ रहा हूं साहब, मैडम बुला रही हैं" । 

मैडम मतलब प्रधानाचार्या जी । विनय को आश्चर्य हुआ कि मैडम इतनी जल्दी आ भी गई हैं । उसे यह जानकर बड़ा अच्छा लगा कि प्रधानाचार्या मैम समय से पहले ही स्कूल आ जाती हैं । जिन विद्यालयों में प्रधानाचार्य समय से पहले विद्यालय आ जाते हैं उन विद्यालयों में अनुशासन बहुत बढिया रहता है । सभी अध्यापक और विद्यार्थी समय पर विद्यालय आ जाते हैं और समय पर सारे कार्य हो जाते हैं । 

विनय यह सोच ही रहा था कि हेतराम उसके पास आकर बोला "आपको मैडम बुला रही हैं" । 
विनय तो स्वयं उनसे मिलने वाला था । चलो अच्छा हुआ जो मैडम ने उसे बुलवा लिया । अगले ही पल वह मैडम के कक्ष में उपस्थित हो गया 
"नमस्ते मैम"
"नमस्ते । आप विनय जी हैं" ? 
"जी मैम , आपने सही पहचाना । मैं जयपुर से आया हूं । आपकी अनुमति हो तो कार्यग्रहण कर लूं" ? विनय अपने नाम के मुताबिक बहुत ही विनम्र भी था । 
"आप अपना आदेश और कार्यग्रहण पत्र मुझे दे दीजिए फिर मैं उस पर आदेश कर दूंगी । लाइये" । मैडम के स्वर में अधिकारिता स्पष्ट झलक रही थी । 
"मैम, कार्य ग्रहण पत्र तो मैं अभी लिखूंगा । हां, स्थानांतरण आदेश की प्रति मैं अभी दे देता हूं" 

मैडम को शायद यह उम्मीद थी कि विनय पहले से ही सारे कागजात तैयार करके लायेगा । मगर विनय की बातों से उसे निराशा हुई । पहला इंप्रेशन ठीक नहीं रहा विनय का । मैडम के चेहरे के भावों से उसे पता चल गया था । 
"आप स्टाफ रूम में बैठकर कार्य ग्रहण रिपोर्ट तैयार कर लो और उसे हेतराम जी के हाथ भिजवा देना । अभी उपस्थिति पंजिका में अपने हस्ताक्षर कर दो" । 
आदेश के अनुसार विनय ने उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर कर दिये और वह स्टाफ रूम में आ गया । तब तक पांच सात अध्यापक भी वहां पर आ चुके थे । सबसे परिचय हुआ और वह अपनी कार्य ग्रहण रिपोर्ट लिखने में व्यस्त हो गया । 
थोड़ी देर में प्रार्थना की घंटी बज गई । सब बच्चे और अध्यापक प्रार्थना स्थल पर पहुंच गये । विनय ने देखा कि सब लोग पूर्ण अनुशासित हैं । न केवल विद्यार्थी अपितु अध्यापक भी । बच्चों ने एक लय में प्रार्थना गाई फिर राष्ट्र गान गाया । "आज का विचार" सुनाया गया और एक विद्यार्थी ने "आज के समाचार" सुनाये । विनय को ये गतिविधियां बड़ी अच्छी लगीं । उसने जयपुर में ऐसी अनुशासित प्रार्थना कभी नहीं देखी थी । वहां तो प्रार्थना के समय आधे बच्चे भी नहीं रहते थे और शिक्षक तो नगण्य ही उपस्थित होते थे प्रार्थना के समय । सब लोग मंत्री, विधायक जी और बड़े अधिकारियों के रिश्तेदार थे इसलिए वे लोग प्रधानाचार्य का न तो आदर करते थे और न ही उनका कहना मानते थे । बेचारा प्रधानाचार्य अपना "टाइम पास" करने में लगा रहता था । किसी को कुछ कहने का मतलब था "आ बैल मुझे मार" । कौन मूरख आदमी है जो काम भी करे और मार भी झेले ? इसलिए "जीओ और जीने दो" के सिद्धांत पर जयपुर के स्कूल चलते थे । 

विनय ने कार्य ग्रहण रिपोर्ट हेतराम के माध्यम से मैडम को भिजवा दी और कक्षा 12 में चला गया । बाद में कक्षा 11 में भी जाकर बच्चों से मिल आया । इतने में इंटरवेल हो गया । सभी अध्यापक स्टाफ रूम में एकत्रित होकर लंच करने लगे । विनय चूंकि लंच कैसे लाता इसलिए सब अध्यापकों ने अपने खाने में से थोड़ा थोड़ा खाना उसे दे दिया । मिल बैठकर सामूहिक भोज की यह व्यवस्था उसे बहुत पसंद आई । 

लंच के दौरान एक अध्यापक ने पूछा "आप भूरी बिल्ली से मिल लिये क्या" ? 
विनय की आंखें आश्चर्य से फैल गईं । अपनी प्रधानाचार्य के प्रति कितना सम्मान था उनके मन में , यह स्पष्ट झलक रहा था । उसने इस तरह दर्शाया जैसे कि वह समझ नहीं पाया हो कि भूरी बिल्ली कौन है ? इस पर एक अन्य अध्यापक ने सफाई देते हुए कहा 
"माफ करना विनय जी । मैडम गुर्राती ज्यादा हैं इसलिए सब लोगों ने उनका नाम भूरी बिल्ली रख रखा है और यह बात मैडम भी अच्छी तरह से जानती हैं । क्या आपकी उनसे मुलाकात हो गई है" ? 
"जी, मैं उनसे मिल चुका हूं" विनय ने विनम्रता का परिचय दिया । 
इतने में एक अध्यापिका बोलीं "जरा संभलकर रहियेगा । बहुत गुस्सैल और बिगड़ैल हैं वे । बड़ी जल्दी उनका पारा सातवें आसमान पर चढ जाता है । आखिर चौथाई औरत हैं ना" । 
"चौथाई औरत" ? विनय ने विस्मय से कहा 
बात संभालते हुए एक अन्य अध्यापिका बोली "अरे कुछ नहीं सर । रचना मैडम तो ऐसे ही कभी कभार कुछ बोल देती हैं । अपने मन में कुछ बुरा भाव नहीं रखती हैं वे पर सच बोलती हैं । और आप तो जानते ही हैं कि सच बहुत कड़वा होता है इसलिए सबको बुरा लगता है" । फिर वह चौथाई औरत कहने वाली  रचना मैडम से बोली "आपको भी ऐसा नहीं कहना चाहिए मैडम । विनय सर ने आज ही तो कार्यग्रहण किया है और आज ही यह सब कहने की जरूरत नहीं थी । धीरे धीरे इन्हें भी पता चल जाता" । उसके स्वर में अप्रसन्नता थी । 
"मैंने कोई गलत बात नहीं कही है । चौथाई औरत को चौथाई नहीं कहूंगी तो और क्या कहूंगी ? और मैं एक बात बता दूं सबको , मैं किसी से डरती नहीं हूं । जाओ, कह देना उस भूरी बिल्ली से" । रचना मैडम के स्वर में आक्रोश था । 

इससे पहले कि कोई और कुछ कह पाता इंटरवेल समाप्त होने की घंटी बज गई थी । सभी अध्यापक फटाफट अपनी अपनी कक्षाओं में दौड़ गये । 

विनय के दिमाग में रह रहकर "चौथाई औरत" शब्द कौंध रहे थे । वह कुछ सोचता इससे पहले हेतराम उसके पास आकर बोला "मैडम ने आपका टाइम टेबल बना दिया है" उसने एक कागज उसे पकड़ा दिया । विनय के मस्तिष्क में अभी भी "चौथाई औरत" का शोर गूंज रहा था । विनय ने उससे पूछ लिया 
"हेतराम जी, ये चौथाई औरत कौन है" ? 
उसके इस सवाल पर हेतराम चौंक गया "क्या साहब ! आपने आज ही तो ज्वाइन किया है और इन लोगों ने आज ही आपको चौथाई औरत के बारे में सब कुछ बता भी दिया ? बड़े ओछे लोग हैं ये" ? 
"कुछ बताया नहीं है इसीलिए तो आपसे पूछ रहा हूं" 
"क्या बताऊं साहब ? ये लोग मैडम को चौथाई औरत बोलते हैं । मैडम ने शादी नहीं की है ना ! शादी कर लेतीं तो वे आधी औरत हो जातीं और बच्चे हो जाते तो वे पूरी औरत बन जातीं । अब वे करीब चालीस की हो गई हैं तो अब उनसे कौन विवाह करेगा ? इसीलिए ये लोग उन्हें चौथाई औरत कहते हैं" हेतराम ने बहुत धीमी आवाज में कहा । 

विनय को अब मैडम की वास्तविकता का पता चल चुका था । विनय की नजरों में अब प्रधानाचार्य मैम संसार की सबसे कमजोर स्त्री नजर आने लगी । इंसान की सबसे पहली और सबसे मजबूत शक्ति उसका परिवार होती है । यदि किसी का परिवार ही नहीं है तो उससे ज्यादा कमजोर व्यक्ति और कौन हो सकता है ? ताकतवर दिखने के लिए वह बाह्य आडंबर रचता है और कठोर दिखने का स्वांग भरता है जबकि वह व्यक्ति अंदर से टूटा हुआ खोखला होता है मगर वह ऐसे व्यवहार करता है जैसे कि वह सबसे मजबूत व्यक्ति है । लोग उसके इस रूप को देखकर उसके पास नहीं आते और इस तरह वह अपनी पीड़ा का सार्वजनिक प्रदर्शन होने से रोक लेता है । ऐसा करके वह स्वयं को विजेता समझने लगता है जबकि वह वास्तव में सबसे ज्यादा पराजित व्यक्ति होता है । विनय को मैडम पर दया आने लगी । ऐसे लोग घृणा के नहीं दया के पात्र होते हैं । 

विनय की फितरत ऐसी थी कि वह सदैव मुस्कुराता रहता था । गम उसके पास फटकते भी नहीं थे । कोरोना ने उसे कितना कष्ट दिया था । उसकी पत्नी को छीन लिया था उससे । उसका पुत्र अभी 10 वर्ष का ही तो है । इतनी छोटी उम्र में ही वह मां के साये से विमुख हो गया था । उस पर उसका इतनी दूर स्थानांतरण हो गया था लेकिन वह हिम्मतवाला इंसान था । भगवान पर पूरा भरोसा था उसे । वह मानकर चलता था कि ईश्वर जो करते हैं अच्छा ही करते हैं । इन सब घटनाओं के पीछे ईश्वर की क्या योजना है , हम इंसान लोग कहां समझ पाते हैं ? हमारा कर्तव्य है निष्काम कर्म करना और विनय यही कर रहा था इसलिए वह विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुरा लेता था । 

विनय ने एक मकान में एक कमरा, रसोई और लैट बाथ किराये पर ले लिये और वह सामान लेने जयपुर आ गया । उसने अपने पुत्र नकुल की टी सी कटवा ली और उसे लेकर सिणधरी आ गया । नकुल का एडमिशन अपने ही स्कूल में करवा दिया । 

धीरे धीरे समय गुजरता गया । प्रार्थना के समय रोज सुनाये जाने वाले सुविचार और समाचारों की गुणवत्ता बहुत श्रेष्ठ हो गई थी । देवयानी मैडम भी इस परिवर्तन को देख रही थी । उसने उन बच्चों की नोट बुक भी चैक की थी जो सुविचार पढते थे पर सब नोट बुक्स में लेख आरती मैडम का ही था । इससे वह संतुष्ट हो गई थी । 

एक दिन विनय पुस्तकालय में बैठकर सभी समाचार पत्र पढ रहा था और उनको संकलित कर रहा था । तभी प्रधानाचार्य देवयानी मैडम आ गईं । विनय उन्हें देखकर सकपका गया । उसकी चोरी पकड़े जाने का अंदेशा था । दरअसल आज के सुविचार और समाचार वह ही लिखता था जिन्हें आरती मैम अपने हस्तलेख से बच्चों की नोट बुक में लिखती थी । इस बात की जानकारी केवल विनय और आरती मैडम को ही थी । पुस्तकालयाध्यक्ष तिवारी जी भी इस सच्चाई को जानते थे मगर देवयानी मैडम को कौन कहता ? देवयानी मैडम ने समाचारों के संकलन वाली विनय की नोट बुक देखी तो उसे सब माजरा समझ में आ गया । पुस्तकालयाध्यक्ष डर के मारे कांपने लगा जबकि विनय शांत खड़ा रहा । 

मैडम ने विनय को घूरते हुए कहा "आप मेरे चैंबर में आइए । और हां , अपने साथ आरती मैडम को भी लाइए" । यह कहकर मैडम उसकी नोटबुक लेकर तेज कदमों से चली गई । लोगों ने ऐसे सांस ली जैसे कोई तूफान गुजर गया हो । 

विनय आरती मैडम के पास गया और बोला "आपको प्रधानाचार्य मैम बुला रही हैं । मेरे साथ आ जाओ" 
"लगता है कि आज भांडा फूट गया है । पर इसके लिए केवल आप जिम्मेदार हैं विनय जी । मैंने तो बहुत मना किया था पर आप नहीं माने थे । मैं तो मैम से साफ साफ कह दूंगी, हां" आरती मैडम नागिन सी फुंफकार रही थी । दोनों प्रधानाचार्य के कक्ष में आ गये । 

जैसे ही वे कक्ष में पहुंचे उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा । मैडम ने अपनी मेज के सामने दो कुर्सी भी रखवा रखी थी । आज तक कभी किसी ने वहां पर कुर्सी नहीं देखी थी । जिसे भी बात करनी थी मैडम से, उसे खड़े खड़े ही बात करनी पड़ती थी । मगर आज तो मैडम ने पहले से कुर्सी लगवा रखी थी । एक मरखनी गाय दूध देने वाली गाय बन गई थी । 
देवयानी मैडम ने दोनों को कुर्सी पर बैठने के लिए कहा और बोली "मुझे पहले ही शक हो गया था कि दाल में कुछ काला है मगर तब मेरे पास सबूत नहीं था , आज है" । विनय की नोटबुक लहराते हुए वे बोलीं । मगर मुझे अच्छा भी लग रहा था । सुविचार और समाचारों की गुणवत्ता एकदम से बढ गई है । यह एक अच्छा संकेत है । पर यह बात मुझसे छुपाई क्यों ? मुझे बताई क्यों नहीं" ? 

विनय कुछ बोलता इससे पहले ही आरती बोल पड़ी "मेरा कोई कसूर नहीं है मैम । विनय जी की ही सारी योजना थी यह । मैंने मना भी किया लेकिन ये माने ही नहीं, मैम । इसलिए जो भी दंड देना हो विनय सर को दीजिए मैम" । 

मैडम ने एक बार गुस्से से आरती मैडम की ओर देखा तो आरती मैडम को ऐसा लगा जैसे एक भूखी सिंहनी उसे जिंदा ही निगल जायेगी । वह सहम कर नीचे देखने लगीं । आरती मैडम की ऐसी हालत देखकर देवयानी मैडम को जोर की हंसी आ गई । आरती को लगा जैसे कोई भूतनी हंस रही है मगर विनय को प्रधानाचार्य मैम में यह परिवर्तन बहुत सुखद लगा । आज से पहले किसी ने देवयानी को हंसते हुए नहीं देखा था । बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू करते हुए देवयानी बोली "थैंक्स विनय जी । आपने बहुत अच्छा काम किया है । आगे से इस काम को आप ही करेंगे । मैं इसके आदेश निकलवा देती हूं । और हां आरती मैम ! आप निश्चिंत रहो, आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी" । 

"जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए" आरती सोचने लगी । विनय को ऐसा लगा कि हिमालय दरक रहा है । चट्टान पिघल रही है । शून्य में कोई आकृति बन रही है । यह एक सुखद संकेत था । देवयानी और हंसी ? 36 का आंकड़ा था दोनों में । हंसती हुई देवयानी कितनी सुंदर लग रही थी । काश उनके चेहरे पर यह हंसी हरदम बरकरार रहे , वह ईश्वर से प्रार्थना करने लगा । 

एक दिन अपने लंच बॉक्स के साथ दो परांठे और आम का आचार देवयानी के लिए भी ले आया था विनय । देवयानी कभी लंच नहीं करती थी और अपने चैंबर में ही बैठी रहती थी । सहमते हुए अंदर दाखिल हुआ था विनय देवयानी के चैंबर में । देवयानी की नजरें अखबार में गड़ी हुई थीं । अचानक विनय को देखकर वह थोड़ी असहज हुई मगर फिर संयत होकर बोली 
"अरे विनय जी आप ! बैठिए बैठिए" 
"नहीं मैम, मैं यहां बैठने नहीं आया , मैं तो लंच में अपने हाथ से बने दो परांठे और अपने हाथ से ही बना आम का आचार लेकर आया हूं । आपने महिलाओं के हाथों से बने परांठों और आचारों का स्वाद तो बहुत लिया होगा पर मर्दों के हाथ से बने पराठों और आचार का स्वाद कभी चखा नहीं होगा । आज लंच में इन्हें टेस्ट कर बताइये कि कैसे बने हैं" ? 
"आप शायद नहीं जानते हैं कि मैं लंच नहीं करती हूं । इसलिए आप इन्हें ले जाइए" । देवयानी बेरुखी से बोली 
"मैम, मैंने कभी कोई जिद नहीं की है पर आज आप मेरा मान रख लीजिए" और उसने हाथ जोड़ दिए । 
देवयानी ने न चाहते हुए भी परांठे और आचार अपने पास रख लिया । विनय स्टाफ रूम में आकर सबके साथ मिल बांटकर लंच करने लगा । उसके हाथ के बने परांठों और आम के आचार ने धूम मचा दी थी । सारी महिला अध्यापिकाओं ने भी उनकी भरपूर प्रशंसा की थी । मर्दों के हाथ के बने खाने का आनंद कुछ अलग ही होता है । 

अगले दिन खाली पीरीयड में मैडम ने विनय को बुलवा लिया । देवयानी विनय के सामने लंच बॉक्स खोलकर बोली "आपके हाथ के बने परांठे और आचार लाजवाब थे । सच में कमाल का खाना बनाते हैं आप । मैं भी आज लंच बॉक्स लेकर आई हूं, आप भी लीजिए" । 
"सॉरी मैम, मैंने अभी अभी लंच में ले लिया है । अब तो रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है" विनय हाथ जोड़कर बोला 
"ऐसे कैसे नहीं है गुंजाइश ? आइए और मेरा साथ दीजिए" । 
झक मारकर विनय ने एक परांठा उठा लिया । वाकई बहुत टेस्टी था वह । देवयानी कहने लगी "मैंने भी आज बहुत दिनों बाद खाना बनाया है । चंपा ही बनाती है मेरा खाना । कहो , कैसे बने हैं ? वैसे एक बात कहूं ! झूठी प्रशंसा मत करना" । 
"झूठी प्रशंसा की जरूरत ही नहीं है मैम , बहुत ही टेस्टी बने हैं । एक बात कहूं मैम, अगर बुरा ना मानो तो" ? 
"कहिए, कहिए न ! इसमें बुरा मानने की क्या बात है" ? 
"यदि आप भी हम सबके साथ स्टाफ रूम में लंच लें तो सारे  स्टाफ में जान आ जायेगी" विनय ने अनुनय करते हुए कहा । 
देवयानी काफी देर तक सोचती रही फिर मुस्कुरा कर बोली "आप कहते हैं तो मैं कल से स्टाफ रूम में ही सबके साथ लंच करूंगी" उसकी मुस्कान और बड़ी हो गई । 
विनय ने देवयानी को मुस्कुराते हुए देखकर कहा "एक बात और कहना चाहता हूं , यदि बुरा ना मानें तो" ? 
"हां, हां, निस्संकोच होकर कहिए" अब उसके स्वर में उत्सुकता थी 
"यही कि आप हंसती हुई बहुत अच्छी लगती हैं । इस हंसी को अपने लबों पे सदा सजाए रखना" और विनय यह कहकर बाहर निकल गया । देवयानी उसे जाते हुए देखती रह गई । 

अगले दिन से देवयानी में सबको परिवर्तन दिखने लगा । उसके अधरों पे हलकी हल्की लिपस्टिक लगी हुई थी । उसके माथे पे एक छोटी सी बिंदी भी लगी हुई थी जो उसकी साड़ी से मैच कर रही थी । हाथों में कांच की चूड़ियां भी पहनी थी उसने और पैरों में पायल भी बंधी हुई थी । उसकी हंसी के कारण उसके मोतियों से दांत कभी कभी दिख जाते थे । बालों को भी उसने करीने से संवार कर खुला छोड़ रखा था । वह आज ऐसे लग रही थी जैसे कि कोई तितली फुर्र से उड़कर भाग जाना चाहती है । सब लोगों ने लंच के समय एक साथ खाना खाया । प्रधानाचार्य की उपस्थिति पहली बार हुई थी इसलिए सब लोग चुपचाप खाना खा रहे थे । टोकते हुए देवयानी बोली 
"खाना निगलने के लिए मुझे यहां लेकर आये हो क्या विनय जी" ? देवयानी की बात पर सब लोग चौंके और सब लोग देवयानी को देखने लगे । सबको इस तरह घूरकर देखते हुए पाकर देवयानी जोर से हंस पड़ी । पूरे स्टाफ रूम में खिलखिलाहट भर गई । अब देवयानी बदल रही थी । 

एक दिन देवयानी ने विनय को बुलाकर कहा "वाद विवाद की एक राज्य स्तर पर प्रतियोगिता होने जा रही है । यह पहले जिला स्तर पर होगी । प्रत्येक जिले में दो दो टीमें पुरस्कृत होंगी । प्रथम स्थान पर रहने वाली सभी जिलों की टीमों के मध्य फिर से प्रतियोगिता होगी । उसमें से तीन टीमों का चयन कर उन्हें राज्य स्तर पर गणतंत्र दिवस को पुरस्कृत किया जायेगा । वाद विवाद का विषय है "मां बनकर ही नारी पूर्ण कहलाती है" । मैं इस प्रतियोगिता का इंचार्ज आपको बना रही हूं । आप बच्चों का चयन करो, उन्हें तैयार करो और मैं चाहती हूं कि राज्य स्तर पर न सही कम से कम जिला स्तर पर ही हम जीतकर आयें । क्या यह संभव है" ? देवयानी ने बड़ी उम्मीद से विनय की ओर देखा । 
"असंभव शब्द मेरे शब्द कोष में है ही नहीं मैम । मेहनत करना अपना काम है और फल देना "उसका" काम है । आप ईश्वर पर यकीन रखो, वह हमें निराश नहीं करेंगे । 

विनय ने तैयारी आरंभ कर दी । पहले विद्यालय स्तर पर यह प्रतियोगिता करवाई । उसमें टॉप चार लड़कियां चुनी गईं । उन्हें विषय वस्तु तैयार कर दे दी गई फिर बार बार उनसे वह विषय प्रस्तुत करवाया गया । अंत में मैम को दिखाया तो वे खुश हो गईं और कहने लगीं "मुझे उम्मीद है कि तुम लोग राज्य में इस विद्यालय का नाम जरूर रोशन करोगे" । 

टीम जिला स्तर पर प्रथम रही । इस समाचार को सुनकर सबकी बांछें खिल गईं । विनय ने टीम में जोश भर दिया । बाकी सब बच्चे और अध्यापकगण भगवान से प्रार्थना करने लगे । ईश्वर की कृपा रही और टीम राज्य में प्रथम स्थान पर रही । देवयानी को राज्य स्तर पर पुरस्कृत होने के लिए बुलाया गया तो देवयानी ने इसका समस्त श्रेय विनय को दिया और उसे पुरुस्कृत होने के लिए भेज दिया । तब उसे पता चला कि विनय की पत्नी की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है । 

विनय का पूरे विद्यालय में जमकर स्वागत सम्मान हुआ । वह हीरो बन गया था । एक दिन विनय अपने घर पर खाना बना रहा था तो उसने देखा कि देवयानी उसके मकान की ओर ही चली आ रही है । विनय फटाफट रसोई में से निकल कर उन्हें लिवाने आ गया । उनके साथ एक युवती भी थी  । 

"यह चंपा है विनय जी । हमारे घर में काम करती है" । देवयानी कुर्सी पर बैठते हुए बोली 
"मुझे बुलवा लिया होता, मैम" ? विनय संकोच से दोहरा हो रहा था 
"नहीं, हम आपके घर को देखना चाहते थे इसलिए आ गये । उन्होंने चंपा की ओर देखा तो चंपा उठकर खडी हो गई और बिना कुछ कहे बाहर गेट पर जाकर खड़ी हो गई । तब देवयानी बोल पड़ी 
"आप सदैव कहते थे कि विवाह के बिना औरत "चौथाई औरत", बिना मां बने हुए "आधी औरत" होती है । मैं भी एक ऐसी ही अभागिन "चौथाई औरत" हूं । मेरी जब नौकरी लगी थी तब मेरे लिए एक से बढकर एक रिश्ते आये थे मगर तब मैं आसमान में उड़ रही थी इसलिए मुझे तब एक राजकुमार चाहिए था । मुझे कोई रिश्ता पसंद ही नहीं आया । फिर धीरे धीरे समय गुजरता गया और रिश्ते आने बंद हो गये । तब मैं चाहती थी कि मेरी शादी हो जाये मगर मेरी बेवकूफी की वजह से मेरी शादी नहीं हुई । तब तक मैं 35 वर्ष की हो चुकी थी । अब पछताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया था मेरे पास । मगर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत । 

फिर मैं चाहकर भी पूर्ण नारी नहीं बन सकीं । तुम तो स्वयं बहते हुए झरने की तरह सदा जीवंत हो । तुम्हारी पत्नी कोरोना में चल बसीं फिर भी तुमने न केवल स्वयं को संभाला बल्कि नकुल की भी बढिया परवरिश की । आज मैं आपसे कुछ मांगने आई हूं । अपनी पत्नी बनाकर मुझे चौथाई से आधी और नकुल की मां बनाकर मुझे पूर्ण औरत बना दो ना" । देवयानी के दोनों हाथ जुड़े हुए थे और आंखों से आंसू गिर रहे थे । 
विनय ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया था । देवयानी का चेहरा पूर्ण औरत बनकर कैसा खिल गया था । 

श्री हरि 
16.1.2023 

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4 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:57 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:08 PM

धन्यवाद मैम

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Varsha_Upadhyay

16-Jan-2023 10:40 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jan-2023 11:24 PM

धन्यवाद जी

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